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"अंत ही प्रारब्ध जब"

अंत ही प्रारब्ध जब , विनाश ही समर्थ है।
त्वरित द्रवित भावना ,प्राण में एकत्र है।।

प्रतिशोध जब काल से ही , प्रेम तब निरर्थ है।
आत्माओ से सुनो , मृत्यु में क्या अर्थ है।।

स्वांस क्षीण हो नही , रक्त की नदी नदी।
पाप के विनाश तक , मृत्यु को नहीं नहीं।।


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