"अंत ही प्रारब्ध जब"
अंत ही प्रारब्ध जब , विनाश ही समर्थ है
त्वरित द्रवित भावना , प्राण में एकत्र है....
भस्म सर्प नग्न तन जटा धार एकांत में ।
शिव ज्वलित आज भी वैरागियों के वृतांत् में ।।
शिवालयों में अब शायद नहीं मिले महाकाल ।
मानवता शायद खो चुकी वो हृदय अनंत विशाल ।।
किंचित् शिव आज भी मिलेंगे "सती" के प्यार में ।
या तो "पार्वती" के इंतज़ार में या "सोलह सोमवार" में ।।
"In the quiet of night, stars whisper dreams to the moon, painting the sky with secrets untold."