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"शिव ज्वलित आज भी"

भस्म सर्प नग्न तन जटा धार एकांत में ।
शिव ज्वलित आज भी वैरागियों के वृतांत् में ।।

शिवालयों में अब शायद नहीं मिले महाकाल ।
मानवता शायद खो चुकी वो हृदय अनंत विशाल ।।

किंचित् शिव आज भी मिलेंगे "सती" के प्यार में ।
या तो "पार्वती" के इंतज़ार में या "सोलह सोमवार" में ।।

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