"अंत ही प्रारब्ध जब"
अंत ही प्रारब्ध जब , विनाश ही समर्थ है
त्वरित द्रवित भावना , प्राण में एकत्र है....
अनंत को भी जीत कर महारथी कहाँ गए ।
इसी की आगोश मे ही सभी वहीं समा गए ।।
अथाह विशाल ये गगन , धरा जल और पवन ।
तु तेरा अहंकार , कुछ नही तेरा ये मन ।।
ईश्वर तेरे विरुद्ध मैं, वेदों को नकारता ।
मोक्ष लक्ष्य है नही, मैं शून्यता पुकारता ।।
"In the quiet of night, stars whisper dreams to the moon, painting the sky with secrets untold."